पाचन संस्थाके विकारों में सबसे ज़्यादा तकलीफ देनेवाला विकार है आँतोका दहा। आमतौरपर की हुई जाँच में कुल जनसंख़्यके १५ लोगों में इस विकारका प्रादुर्भाव दिखाई देता हे। इस विकारके प्रमुख लक्षण इस प्रकार हे-
१. पेट में रहरहरकर दर्द
२. बद्धाकोष्टाता अथवा
३. अतिसार

सबसे महत्वपूर्ण बात यह हे के इस विकारका निदान होना बहुत मुष्किल है खून अथवा मल की जाँच में किसी प्रकार का दोष दिखाई नहीं देता। इस तरह छोटे और बड़े आँतोकी बेरियम देकर एक्सरे लेकर जाँच करने पर भी कोही दोष दिखाई नहीं पाया जाता। दुर्बिन की सहायता से आँतोकी जाँच करने परभी कोई भी दोष नहीं पाया जाता। संक्ष पमें , इस विकारमे सूजन,अल्सर ,टी. बी ,कोलायटिस या केन्सरी नहीं होता। ऊपर निर्देशित किये हुए कोईभी विकार न होने पर भी पेटमे लगातार दिन ब दिन दर्द क्यूँ होता रहता है? इसका करण है बस आँतोके आकुंचन तथा प्रसरन क्रियाओ में असंतुलन पैदा होता है। इस विकरमे आँतोका आकुंचन हमेशा से ज़्यादा जोरसे और दबाब से होता है। इसी करण रुग्णोंको पेटमे अलग जगह पर वेदना महसूस होती है। अगर इस विकारका निशिचत निदान नहीं किया गया तो अपैडिक्स, पित्त्ताशय या गर्भाशय को सूजन है ऐसे सोचकर पेटपर शस्त्रक्रिया करके कोई एक अवयन निकालने की संभावना रहती है। पेटमे दर्द के कारण योग्य समयपर आँतोके दाहकी तकलीफ ऐसा निशिचत निदान किया गया तो ऊपर दी हुइ शस्त्रक्रिया टाल सकते है। इसी कारण आँतोको दाहकी तकलीफ सचमुच क्या है ,उसके लक्षण क्या है ये हम अभी देखेगे :

१. कभी बद्धकोष्ठता या कभी अतिसार
२. पेटमे अलग अलग जगहपर रह रहकर दर्द
३. पेटमे दर्द शुरू होते ही संडास जाने की इच्छा का प्रादुर्भाव
४. संडास करने के बाद बी पेट साफ ना होने की भावना
५. संडास कभी सखत कभी पतला होना
६. कभी कभी पेचीस होना
७. खाना खाने के बाद पेटके दर्द की शुरुआत
८. पेट फूलना अथवा गुब्बारा या भारीपन महसूस होना
९. संडास साफ होने पर पेटका दर्द कम होना या रुकना
१०. कुछ रुग्णोंको सुबह ३-४ बार पेटमे दर्द के साथ संडास होना है और संडास के बाद दिनभर बिलकुल तकलीफ नहीं होती
११. कुछ रुग्णोंको कुछ भी खानेके बाद या चाय कॉफी पीने के बाद तुरन्त संडास जाना पड़ता है
१२. रात की नींद तोड़कर संडास जाने की इच्छा इस विकारमे दिखाई नहीं देती लेकिन यह लक्षण अलग अलग प्रकारक कोलायटिस के रुग्णाम मात्र दिखाई देता है

संक्षोपमें कह सकते है कि आँतो की अनियमितताकी तकलीफों को प्रकारके घटक शुरू करते है। आमतौरपर मानसिक तनाव और आहार ये दो प्रमुख कारण ऊपर दीये हुए लक्षण होते है। कॉफी , अतिरिक़्त मद्यपान या चटपटीत मसालेदार खाने की चीजे आँतोको हानिकारक होती है। किसी भी उभका रुग्ण जब डॉक्टर को पहली बार मिलता है तब बद्धकोष्ठता की तकलीफ बहुत पुरानी मालूम होती है। हफ्ते में सिर्फ एक -दो बार ही संडास होता है। पेट साफ रखने के लिये रेचको का हमेशा उपयोग किया जाता है। संडास कहा कब और कितनी बार जाना पड़ेगा इस बार बार आने वाली शंकसे रुग्ण चिंतित रहता है। आँतोका दाहकी तक़लीफ़मे बहुत समयतक जोर करने पर भी पेट अच्छी तरहसे साफ नहीं होता है। पटका दर्द ,टीस आदि बाधाए शुरू होती है। पेटमे दर्द की जगह निशचित नहीं होती है। यह तकलीफ कुछ मिनिटो में लेकर कुछ घंटोंतक रह सकती है। वात निकलने से ,संडास होने से या एनिमाके प्रयोग के बाद इसका शमन होता है। कुछ दिनों के बाद पेटका दर्द पहले से काफी बढ़ता जाता है। बध्द कोष्ठता की बात ही भूल जाते है '
लगातार पेटके दर्द के कारण अकार्यक्षम पित्ताशय,अपेंडिक्स या बाकी कुछ अंगो की क्ष-किरण ब्दारा चिकित्सा करने के बाद शस्त्रक्रिया करके उन्हें निकलने पर उत्तर आते हे। ऊपर निर्दे शित किये हुए अंग व्याधिगस्त हो भी सकते हे लेकिन इन लक्षणो का मूल कारण उनका व्याधिगस्त होना ही होने से उनपर की गई शस्त्रक्रिया आगे चलकर निदान निशिचतीमें और भी बाधाए डाल सकती है

इन सब बातोंको मधे नज़र रखते हुए ,पेटके विभिन्न अंग ,जैसे कि पेट(जटर) स्वादु पिंड, पित्तशयच ,छोटे और बड़े आंत ,अपेंडिक्स,औरतों में गर्बाशय की तरह तरहकी बीमरीके कारण दर्द हो सकता है। लेकिन पेट का कारण आँतो का दाह ही है। अथवा उपर दिये हुए अंगों में कुछ विकार उसका कारण है यह समझना बहुतही महत्वपूर्ण होता है। और उसके लिये निचे दिये हुए कुछ टेस्ट करना आवश्यक होता है।

१. खून की जांच -इसमें हीमोग्लोबिन और तरह तरह की पेशियोका प्रमाण देखा जाता है।
२. मल परीक्षा -इसमें पेचिस और कृमी की जाँच होती है।
३. फायबर ऑप्टिक दुर्बिन्की मददसे बड़े ऑत की जाँच (फ्लेक्सिबल सिग्माइडो स्कोपि )
   इस जाँच के ब्दारा बड़े आँत को अगर किसी प्रकार का विकार है तो वह तुरन्त मालूम पड़ता हे।

उदारहण के तौरपर बड़े आँतो का कैंसर (कर्क रोग ),कोलायटिस,टी. बी.,गाँठ या सूजन ई. आधुनिक उपकरणोमे आँतोकी जाँच के लिए इस फायबर ऑप्टिक दूरबीन से बेहतर साधन उपलब्ध नहीं है दुर्बिन्की सहायतासे की गइ जाँच के ब्दारा "आँतो के दाह " के रुग्ण के आँतो में कुछ भी दोष दिखाई नहीं देता। और इस रुग्ण के आँतो में दुर्बिन ब्दारा थोड़ी भी हवा भर दी गइ तो वे उसे सह नहीं पाता। दुर्बिनब्दारा जाँच करने के बाद डॉक्टर रुग्णोंको निशिचत रूपसे बता सकते है कि उन्हें पेटमे जो तकलीफ है वह दूसरे बिमारियों से नहीं बल्के आँतो के दाहके कारण ही है। इस वजहसे रुग्ण का आत्मविश्वास बढ़कर भय दुर होता है और उन्हें थोड़ी राहत मिला जाती है। निदान निशिचततीके बाद आवश्यक दवाइयों का उपचार कर सकते है।

आहारपर नियंत्रण,प्रकार और प्रमाण यह आँतोके दाहके विकारों के उपचार का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। आहारमे तंतुमय तथा हरी सब्जियाँ,फल और आटे की छन में मुख्यतः सेल्यूलोज तथा है मिसेल्युलोज ये घटक रहते है। ये घटक पानी सोख लेते है और आँतोके अंदर फूल जाते है। इसी कारण मलका वजन और आकर बाद जाता है तथा संडास सहजा और साफ हो जाता है। बद्धकोष्ठता के रूग्ण को निचे बताया हुआ आहार लेना चाहिए। बद्धकोष्ठता के रूग्ण को निचे बताया हुआ आहार लेना चाहिए।

दिनमे तीन बार फल तथा उबले सब्जियों का सेवन करना। सुबह उठने पर १ गिलास गुनगुना पानी पीना। तंतु मय आहारके साथ पानी अधिक मात्रमे पीना। यह अति महत्व पूर्ण है। उसके साथही हल्का व्यायाम करना। इन दिनों में रेचक का प्रयोग करना मना है उसके तत्काल तकलिफ कम होने पर भी आँतो पर दूरगामी बुरा असर होता है। ऐसे नित्यक्रम का फायदा धीरे धीरे होता है और शरीर का लक्षण बदलना शुरू होता है। रुग्णको संडासको साफ होना होता है पेटका दर्द कम होने लगता है। पेटमे टीस या बात काम होता है। कुछ रुग्ण उबली हुई हरी सब्जियॉं और फल का ज़्यादा आहार नहीं ले सकते तो सतइसबग़ोल उदा. न्याचरोलक्स लेना चाहिए। शामके खाने के २० मिनिट बाद १ चमच भर पाऊडर १ गिलास पानिमे मिलकर पीना चाहिये। संगंहणीके रुग्णों को आहार पर नियंत्रण रकना जरुरी है। इन दिनों में चटपटीत खाने की चीजे बज़र्य करना जरुरी है। उसी तरह मद्यपान करना संपूर्णतः निषिद्ध है। मेडिकल क्षेत्रमें जलदगती से हुई प्रगतिसे और विबिन्न प्रकारके बराबर साधनों की उपलब्धताके कारण डॉक्टरों को अब पेटके दर्द का कारण बताना संभवनिया हो गया है।